Wednesday, January 18, 2012

In Honor of Netaji Subhash Chandra Bose's Birth Anniversary 23rd Jan 1964

वह खून कहो किस मतलब का, जिसमें उबाल का नाम नहीं।
वह खून कहो किस मतलब का आ सके देश के काम नहीं।


वह खून कहो किस मतलब का जिसमें जीवन, न रवानी है!
जो परवश होकर बहता है, वह खून नहीं, पानी है!


उस दिन लोगों ने सही-सही खून की कीमत पहचानी थी।
जिस दिन सुभाष ने बर्मा में मॉंगी उनसे कुरबानी थी।


बोले, "स्वतंत्रता की खातिर बलिदान तुम्हें करना होगा।
तुम बहुत जी चुके जग में, लेकिन आगे मरना होगा।


आज़ादी के चरणें में जो, जयमाल चढ़ाई जाएगी।
वह सुनो, तुम्हारे शीशों के फूलों से गूँथी जाएगी।


आजादी का संग्राम कहीं पैसे पर खेला जाता है?
यह शीश कटाने का सौदा नंगे सर झेला जाता है"


यूँ कहते-कहते वक्ता की आंखों में खून उतर आया!
मुख रक्त-वर्ण हो दमक उठा दमकी उनकी रक्तिम काया!


आजानु-बाहु ऊँची करके, वे बोले, "रक्त मुझे देना।
इसके बदले भारत की आज़ादी तुम मुझसे लेना।"


हो गई सभा में उथल-पुथल, सीने में दिल न समाते थे।
स्वर इनकलाब के नारों के कोसों तक छाए जाते थे।


“हम देंगे-देंगे खून” शब्द बस यही सुनाई देते थे।
रण में जाने को युवक खड़े तैयार दिखाई देते थे।


बोले सुभाष, "इस तरह नहीं, बातों से मतलब सरता है।
लो, यह कागज़, है कौन यहॉं आकर हस्ताक्षर करता है?


इसको भरनेवाले जन को सर्वस्व-समर्पण काना है।
अपना तन-मन-धन-जन-जीवन माता को अर्पण करना है।


पर यह साधारण पत्र नहीं, आज़ादी का परवाना है।
इस पर तुमको अपने तन का कुछ उज्जवल रक्त गिराना है!


वह आगे आए जिसके तन में खून भारतीय बहता हो।
वह आगे आए जो अपने को हिंदुस्तानी कहता हो!


वह आगे आए, जो इस पर खूनी हस्ताक्षर करता हो!
मैं कफ़न बढ़ाता हूँ, आए जो इसको हँसकर लेता हो!"


सारी जनता हुंकार उठी- हम आते हैं, हम आते हैं!
माता के चरणों में यह लो, हम अपना रक्त चढाते हैं!


साहस से बढ़े युबक उस दिन, देखा, बढ़ते ही आते थे!
चाकू-छुरी कटारियों से, वे अपना रक्त गिराते थे!


फिर उस रक्त की स्याही में, वे अपनी कलम डुबाते थे!
आज़ादी के परवाने पर हस्ताक्षर करते जाते थे!



उस दिन तारों ने देखा था हिंदुस्तानी विश्वास नया।
जब लिक्खा महा रणवीरों ने ख़ूँ से अपना इतिहास नया। 


 - श्री गोपाल दास व्यास जी
Content Courtesy - Indian Army Fans 

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